मिरा चाक-ए-गिरेबाँ चाक-ए-दिल से मिलने वाला है
मगर ये हादसे भी बेश ओ कम होते ही रहते हैं
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क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग
वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है
जूयान-ए-ताज़ा-कारी-ए-गुफ़्तार कुछ कहो
आज मुक़ाबला है सख़्त मीर-ए-सिपाह के लिए
बहार चाक-ए-गिरेबाँ में ठहर जाती है
वफ़ा की रात कोई इत्तिफ़ाक़ थी लेकिन
बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं
निसार यूँ तो हुआ तुझ पे नक़्द-ए-जाँ क्या क्या
ज़हर का जाम ही दे ज़हर भी है आब-ए-हयात
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश
दो गज़ ज़मीं फ़रेब-ए-वतन के लिए मिली
ग़लत-बयाँ ये फ़ज़ा महर ओ कीं दरोग़ दरोग़