ज़हर का जाम ही दे ज़हर भी है आब-ए-हयात
ख़ुश्क-साली की तो हो जाए तलाफ़ी साक़ी
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मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर
सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
जूयान-ए-ताज़ा-कारी-ए-गुफ़्तार कुछ कहो
ग़लत-बयाँ ये फ़ज़ा महर ओ कीं दरोग़ दरोग़
हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं
क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग
ख़ूँ हुआ दिल कि पशीमान-ए-सदाक़त है वफ़ा
अभी तो कुछ लोग ज़िंदगी में हज़ार सायों का इक शजर हैं
आज मुक़ाबला है सख़्त मीर-ए-सिपाह के लिए
ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ
हरम का आईना बरसों से धुँदला भी है हैराँ भी
सुलग रहा है उफ़ुक़ बुझ रही है आतिश-ए-महर