वो लोग जिन से तिरी बज़्म में थे हंगामे
गए तो क्या तिरी बज़्म-ए-ख़याल से भी गए
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
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जी-दारो! दोज़ख़ की हवा में किस की मोहब्बत जलती है
शहर जिन के नाम से ज़िंदा था वो सब उठ गए
ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले
निसार यूँ तो हुआ तुझ पे नक़्द-ए-जाँ क्या क्या
करम का और है इम्काँ खुले तो बात चले
उन को ऐ नर्म हवा ख़्वाब-ए-जुनूँ से न जगा
हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना
एक-आध हरीफ़-ए-ग़म-ए-दुनिया भी नहीं था
इस गुफ़्तुगू से यूँ तो कोई मुद्दआ नहीं
जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत
तिलिस्म-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा ओ दाम-ए-बर्दा-फ़रोश
न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं