बिस्मिल साबरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बिस्मिल साबरी

बिस्मिल साबरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बिस्मिल साबरी
नामबिस्मिल साबरी
अंग्रेज़ी नामBismil Sabri

वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है

निकल के आ तो गया गहरे पानियों से मगर

जब आया ईद का दिन घर में बेबसी की तरह

अब वादा-ए-फ़र्दा में कशिश कुछ नहीं बाक़ी

वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया

हैराँ हूँ कि अब लाऊँ कहाँ से मैं ज़बाँ और

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