नज़र Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़मीन मेरी रहेगी न आइना मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तिरे बग़ैर लग रहा है ये सफ़र ख़मोश है

एज़ाज़ काज़मी

मिरी याद तुम को भी आती तो होगी

क़लील झांसवी

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता

आमिर अमीर

भली हो या कि बुरी हर नज़र समझता है

अतुल अजनबी

कितने में बनती है मोहर ऐसी

अहमद जावेद

कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता

अख़्तर हाशमी

रिवायती मोहब्बत

ममता तिवारी

शाइ'र की इल्तिजा

फ़ज़लुर्रहमान

हिजरत

ग़ज़नफ़र

इक उम्र से जिस को लिए फिरता हूँ नज़र में

अहमद फ़ाख़िर

सीने में दिल जो दर्द का मारा नहीं मिला

अहमद फ़ाख़िर

उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना

ज़ुबैर शिफ़ाई

ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है

शौक़ मुरादाबादी

हर मुलाक़ात में लगते हैं वो बेगाने से

ए जी जोश

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

रो पड़ा ना-गहाँ मुस्कुराने के बा'द

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले

हनीफ़ राही

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था

रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं

अर्श सिद्दीक़ी

देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे

संजय मिश्रा शौक़

कैसी उफ़्ताद पड़ी

फ़ैसल हाश्मी

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

दौर आफ़रीदी

कचरे का ढेर

बुशरा सईद

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