नज़र Poetry (page 67)

बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा

हसरत मोहानी

आसान-ए-हक़ीकी है न कुछ सहल-ए-मजाज़ी

हसरत मोहानी

हर्फ़-ए-इंकार कि इक़रार-ए-वफ़ा था क्या था

हसरत देवबंदी

ज़ाहिदा किस हुस्न-ए-गंदुम-गूँ पे है तेरी निगाह

हसरत अज़ीमाबादी

रहे है नक़्श मेरे चश्म-ओ-दिल पर यूँ तिरी सूरत

हसरत अज़ीमाबादी

भर के नज़र यार न देखा कभी

हसरत अज़ीमाबादी

मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी

हसरत अज़ीमाबादी

कम-तर या बेशतर गए हम

हसरत अज़ीमाबादी

कब तलक हम को न आवेगा नज़र देखें तो

हसरत अज़ीमाबादी

जिस का मयस्सर न था भर के नज़र देखना

हसरत अज़ीमाबादी

देखें तुझे न आवेंगे हम

हसरत अज़ीमाबादी

भरे सफ़र में घड़ी-भर का आश्ना न मिला

हसनैन जाफ़री

वो सब में हम को बार-ए-दिगर देखते रहे

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तुम चुप रहे पयाम-ए-मोहब्बत यही तो है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

मज़हब-ए-इश्क़ में शजरा नहीं देखा जाता

हाशिम रज़ा जलालपुरी

नज़र न आए हम अहल-ए-नज़र के होते हुए

हसीब सोज़

कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हसन रिज़वी

फिर नए ख़्वाब बुनें फिर नई रंगत चाहें

हसन रिज़वी

कोई मौसम भी हम को रास नहीं

हसन रिज़वी

कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हसन रिज़वी

सूखे हुए दरख़्त के पत्तों को देखना

हसन निज़ामी

वो कज-निगाह न वो कज-शिआ'र है तन्हा

हसन नईम

उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी

हसन नईम

सुब्ह-ए-तरब तो मस्त-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गई

हसन नईम

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे

हसन नईम

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या

हसन नईम

जब्र-ए-शही का सिर्फ़ बग़ावत इलाज है

हसन नईम

इश्क़ के बाब में किरदार हूँ दीवाने का

हसन नईम

बिछ्ड़ें तो शहर भर में किसी को पता न हो

हसन नईम

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