नज़र Poetry (page 136)

अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है

आसी रामनगरी

रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता

आसी करनाली

उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था

आसी ग़ाज़ीपुरी

ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई

आसी ग़ाज़ीपुरी

उस शोख़ से मिलते ही हुई अपनी नज़र तेज़

आसी फ़ाईकी

उस पे क्या गुज़रेगी वक़्त मर्ग अंदाज़ा लगा

आसी फ़ाईकी

रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ख़बर तो दूर अमीन-ए-ख़बर नहीं आए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

जिस की न कोई रात हो ऐसी सहर मिले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

हमें सफ़र की अज़िय्यत से फिर गुज़रना है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक

आशुफ़्ता चंगेज़ी

न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी

आनिस मुईन

मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज

आनिस मुईन

एक नज़्म

आनिस मुईन

अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ

आनिस मुईन

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं

आलोक श्रीवास्तव

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं

आलोक श्रीवास्तव

झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर

आलोक श्रीवास्तव

अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता

आले रज़ा रज़ा

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है

आल-ए-अहमद सूरूर

शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई

आल-ए-अहमद सूरूर

सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था

आल-ए-अहमद सूरूर

नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें

आल-ए-अहमद सूरूर

आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी

आल-ए-अहमद सूरूर

किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र

आग़ा अकबराबादी

देखो तो एक जा पे ठहरती नहीं नज़र

आग़ा अकबराबादी

बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी

आग़ा अकबराबादी

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