ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं
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किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
मंज़िल पे ध्यान हम ने ज़रा भी अगर दिया
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँ
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
मुझे सिरे से पकड़ कर उधेड़ देती है
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की