यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले
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ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुट्ठी भर दीनारों में
किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँ
हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा