आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँ
आँखों से आगे उन की कोई रहगुज़र नहीं
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जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुट्ठी भर दीनारों में
मंज़िल पे ध्यान हम ने ज़रा भी अगर दिया
तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को
हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं