इनायत Poetry

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

झुलसती धूप में मुझ को जला के मारेगा

ज़ुबैर क़ैसर

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

ऐसे की मोहब्बत को मोहब्बत न कहेंगे

ज़हीर देहलवी

मुझ को ता-उम्र तड़पने की सज़ा ही देना

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

तिरी उल्फ़त में जितनी मेरी ज़िल्लत बढ़ती जाती है

वासिफ़ देहलवी

बयाँ ऐ हम-नशीं ग़म की हिकायत और हो जाती

वासिफ़ देहलवी

कम सितम करने में क़ातिल से नहीं दिल मेरा

वसीम ख़ैराबादी

ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा

वली उज़लत

हमारी क़ुर्बतों में फ़ासला न रह जाए

तसनीम आबिदी

बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे

तअशशुक़ लखनवी

ता-सहर की है फ़ुग़ाँ जान के ग़ाफ़िल मुझ को

तअशशुक़ लखनवी

कल पहली बार उस से इनायत सी हो गई

सय्यद अनवार अहमद

दिल लगाने की भूल थे पहले

सूर्यभानु गुप्त

किया ग़म ने सरायत बे-निहायत

सिराज औरंगाबादी

दिल मिरा साग़र-ए-शिकायत है

सिराज औरंगाबादी

रंग लाया दिवाना-पन मेरा

सिकंदर अली वज्द

नज़र नीची है यार-ए-ख़ुश-नज़र की

सिकंदर अली वज्द

ख़ुदाया हिन्द पर तेरी इनायत हो इनायत हो

श्याम सुंदर लाल बर्क़

साक़ी-ए-दौराँ कहाँ वो तेरे मय-ख़ाने गए

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

उलमा-ए-ज़िंदानी

शिबली नोमानी

वो रक़्स करने लगीं हवाएँ वो बदलियों का पयाम आया

शेवन बिजनौरी

होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है

शेवन बिजनौरी

यार को महरूम-ए-तमाशा किया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है

शारिक़ कैफ़ी

ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है

शारिक़ कैफ़ी

किसी के वादा-ए-फ़र्दा में गुम है इंतिज़ार अब भी

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना

शकील बदायुनी

फ़रेब-ए-मोहब्बत से ग़ाफ़िल नहीं हूँ

शकील बदायुनी

अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की

शहज़ाद अहमद

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