इनायत Poetry (page 3)

मोहब्बत

इंजिला हमेश

हम-साए में शैतान भी रहता है ख़ुदा भी

इमरान आमी

क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़

इम्दाद इमाम असर

बोलिए करता हूँ मिन्नत आप की

इमदाद अली बहर

तर्क-ए-तअल्लुक़ात नहीं चाहता था मैं

इफ़्तिख़ार राग़िब

मिरे चेहरे को चेहरा कब इनायत कर रहे हो

इफ़्तिख़ार क़ैसर

मिरी आँखों को आँखों का किनारा कौन देगा

इफ़्तिख़ार क़ैसर

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

किस पर नहीं रही है इनायत हुज़ूर की

हातिम अली मेहर

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

हातिम अली मेहर

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी

हसरत मोहानी

बेकली से मुझे राहत होगी

हसरत मोहानी

जुदाई भी क़राबत की तरह थी

हसन निज़ामी

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

हसन नईम

बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

अश्कों का मिरी आँख से पैग़ाम न आए

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

कोई इल्ज़ाम कोई तंज़ कोई रुस्वाई

हलीम कुरेशी

मौसम-ए-हिज्र के आने के शिकायत नहीं की

हलीम कुरेशी

होता फ़नकार-ए-जदीद और न शाएर होता

हैदर अली जाफ़री

ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे

हैदर अली आतिश

हवा-ए-दौर-ए-मय-ए-ख़ुश-गवार राह में है

हैदर अली आतिश

वस्ल में आपस की हुज्जत और है

हफ़ीज़ जौनपुरी

शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस

हफ़ीज़ जौनपुरी

ख़फ़ा है गर ये ख़ुदाई तो फ़िक्र ही क्या है

हफ़ीज़ बनारसी

जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है

हफ़ीज़ बनारसी

गुमराह कह के पहले जो मुझ से ख़फ़ा हुए

हफ़ीज़ बनारसी

तिरी उमीदों का साथ देगी इनायत-ए-बर्ग-ओ-बार कब तक

गुलज़ार बुख़ारी

अक्स-ए-रौशन तिरा आईना-ए-जाँ में रक्खा

गुलज़ार बुख़ारी

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