इनायत Poetry (page 5)

मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

ए'तिराफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ

असरार-उल-हक़ मजाज़

लीडर की दुआ

असरार जामई

तुम से शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं

अासिफ़ा ज़मानी

शोर कैसा है मिरे दिल के ख़राबे से उठा

अशहर हाशमी

लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं

असग़र गोंडवी

अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं

असग़र गोंडवी

तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें

असद मुल्तानी

उस अब्र से भी क़बाहत ज़ियादा होती है

असअ'द बदायुनी

यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा

अरशद अली ख़ान क़लक़

लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा

अर्श मलसियानी

लिबास गर्द का और जिस्म नूर का निकला

अक़ील शादाब

पी भी जा शैख़ कि साक़ी की इनायत है शराब

अनवर देहलवी

यूसुफ़-ए-हुस्न का हुस्न आप ख़रीदार रहा

अनवर देहलवी

है वाक़िआ कुछ और रिवायत कुछ और है

अंजुम रूमानी

आलम-ए-वहशत-ए-तन्हाई है कुछ और नहीं

अंजुम आज़मी

थी सियाहियों का मस्कन मिरी ज़िंदगी की वादी

आमिर उस्मानी

गुलों की गर इनायत हो गई तो

आलोक यादव

अपने से बे-समझ को हक़ की कहाँ पछानत

अलीमुल्लाह

नज़्म तकमील

अलीना इतरत

दिल को शाइस्ता-ए-एहसास-ए-तमन्ना न करें

अलीम अख़्तर

एक हुस्न-फ़रोश से

अख़्तर शीरानी

ऐ इश्क़ कहीं ले चल

अख़्तर शीरानी

जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है

अकबर इलाहाबादी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ

अकबर इलाहाबादी

आज़ार बहुत लज़्ज़त-ए-आज़ार बहुत है

अजमल अजमली

साग़र क्यूँ ख़ाली है मिरा ऐ साक़ी तिरे मयख़ाने में

अहमद शाहिद ख़ाँ

एक दरख़्वास्त

अहमद नदीम क़ासमी

आख़िरुल-अम्र तिरी सम्त सफ़र करते हैं

अहमद जावेद

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