किस पर नहीं रही है इनायत हुज़ूर की
साहब नहीं मुझी पे तुम्हारा करम फ़क़त
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(764) Peoples Rate This
कू-ए-क़ातिल में बसेगी नई दुनिया इक और
ऐन-ए-का'बा में है मस्तों की जगह
इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा
ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का
फ़स्ल-ए-गुल आई तो क्या बे-सर-ओ-सामाँ हैं हम
कूचे में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं
कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा
दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया
ज़बाँ से बात निकली और पराई हो गई सच है
गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था