कूचे में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
तो दैर-ओ-हरम क्या है कहेंगे न रहेंगे
Gulzar
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Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
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दीवाना हूँ पर काम में होशियार हूँ अपने
काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ मुश्ताक़-ए-शहादत भी हूँ
ग़ैर हँसते हैं फ़क़त इस लिए टल जाता हूँ
दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका
रात दिन सज्दे किया करता है हूरों के लिए
दोनों उसी के बंदे हैं यकता है वो करीम
बुतों का सामना है और मैं हूँ
बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा
ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं
क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई
दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई
करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस