दीवाना हूँ पर काम में होशियार हूँ अपने
यूसुफ़ का ख़याल आया जो ज़िंदाँ नज़र आया
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ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
मार डाला तिरी आँखों ने हमें
ऐन-ए-का'बा में है मस्तों की जगह
फ़स्ल-ए-गुल आई तो क्या बे-सर-ओ-सामाँ हैं हम
छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम
पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा
दरिया तूफ़ान बह रहा है
पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस
मजमा' में रक़ीबों के खुला था तिरा जूड़ा
तू ने वहदत को कर दिया कसरत
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में
बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा