तू ने वहदत को कर दिया कसरत
कभी तन्हा नज़र नहीं आता
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बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा
दरिया तूफ़ान बह रहा है
बे-क़रारी रोज़-ओ-शब करने लगा
सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'
वहदहू-ला-शरीक की है क़सम
पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया
करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
कोई ले कर ख़बर नहीं आता
वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया
दीवाना हूँ पर काम में होशियार हूँ अपने