तिरी तलाश से बाक़ी कोई मकाँ न रहा
हरम में दैर में बंदा कहाँ कहाँ न रहा
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दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया
उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम
दरिया तूफ़ान बह रहा है
कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम
अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त
साक़ी है न मय है न दफ़-ओ-चंग है होली
इश्क़-ए-जान-ए-जहाँ नसीब हुआ
पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस
गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है
क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई
उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा