ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

हम दिल से ब-तंग आए हैं उकताए हुए हैं

बेताब हैं बेचैन हैं घबराए हुए हैं

हम दिल से ब-तंग आए हैं उकताए हुए हैं

उन होंठों के बोसे का मज़ा पाए हुए हैं

प्यार आया है मुँह तकते हैं ललचाए हुए हैं

ज़ुल्फ़ें वो बला जी को जो उलझाए हुए हैं

जूड़े के उलट बीच में दिल आए हुए हैं

ग़ुस्से में भरे बैठे हैं झल्लाए हुए हैं

अफ़रोख़्ता हैं ग़ैरों के भड़काए हुए हैं

दरवाज़े पे बैठे हैं निकलवाए हुए हैं

हम ने तो ढही दी वो ग़ज़ब ढाए हुए हैं

इठलाए हुए बैठे हैं इतराए हुए हैं

अब रूप है जोबन पे हैं गदराए हुए हैं

क्या बात है क्या बात है तेरी लब-ए-जाँ-बख़्श

ऐसी भी तिरे अहद में दम खाए हुए हैं

मुझ पर उन्हें रहम आए ये मुमकिन ही नहीं है

ऐसे वो समझते नहीं समझाए हुए हैं

करता ग़ज़ब अब तक तो हमारा दिल-ए-बेताब

रोके हुए डाँटे हुए धमकाए हुए हैं

हंगामा रहेगा यूँ ही कूचे में तुम्हारे

आशिक़ कहाँ जा सकते हैं दिल आए हुए हैं

आएँ तो इनायत है नहीं आते न आएँ

हम दिल को तसव्वुर ही से बहलाए हुए हैं

दिल ठहर गया ज़ख़्म-ए-जिगर भर गए अपने

आराम ही हम तुम को जो लिपटाए हुए हैं

मरने पे भी अफ़्सुर्दा-दिली अपनी अयाँ है

तुर्बत पे मिरी फूल भी मुरझाए हुए हैं

अग़्यार-ए-सियह-रू से बहुत रब्त है उन को

वो चाँद हैं ऐ 'मेहर' तो गहनाए हुए हैं

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