विद्वान Poetry

श्री गुरु-नानक

शातिर अमृतसरी

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

रिवायती मोहब्बत

ममता तिवारी

उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना

ज़ुबैर शिफ़ाई

ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है

शौक़ मुरादाबादी

नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम

अनवर शऊर

मौसम हो कोई याद के खे़मे नहीं उठते

वफ़ा नक़वी

अपना सोचा हुआ अगर हो जाए

अहमद महफ़ूज़

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

सुकूत-ए-शब

अज़हर क़ादिरी

जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ

वो कहते हैं कि हम को उस के मरने पर तअ'ज्जुब है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

फिर सर-ए-दार-ए-वफ़ा रस्म ये डाली जाए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

कभी जब्र-ओ-सितम के रू-ब-रू सर ख़म नहीं होता

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

काम हैं और ज़रूरी कई करने के लिए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

अपनी ज़ात के सारे ख़ुफ़िया रस्ते उस पर खोल दिए

ज़ुबैर रिज़वी

हम दोनों में कोई न अपने क़ौल-ओ-क़सम का सच्चा था

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

दिल को रंजीदा करो आँख को पुर-नम कर लो

ज़ुबैर रिज़वी

तुलूअ'

ज़िया जालंधरी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

आँसू

ज़िया जालंधरी

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

चाँद ही निकला न बादल ही छमा-छम बरसा

ज़िया जालंधरी

आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है

ज़िया जालंधरी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

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