विद्वान Poetry (page 26)

कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है

हकीम नासिर

सुना है ज़ख़्मी-ए-तेग़-ए-निगह का दम निकलता है

हैरत इलाहाबादी

तुम्हारे इश्क़ में किस किस तरह ख़राब हुए

हैदर क़ुरैशी

तिरे अबरू-ए-पेवस्ता का आलम में फ़साना है

हैदर अली आतिश

जो देखते तिरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ का आलम

हैदर अली आतिश

ये किस रश्क-ए-मसीहा का मकाँ है

हैदर अली आतिश

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

हैदर अली आतिश

या-अली कह कर बुत-ए-पिंदार तोड़ा चाहिए

हैदर अली आतिश

वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है

हैदर अली आतिश

सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई

हैदर अली आतिश

शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है

हैदर अली आतिश

सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का

हैदर अली आतिश

रोज़-ए-मौलूद से साथ अपने हुआ ग़म पैदा

हैदर अली आतिश

रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए

हैदर अली आतिश

क़ुदरत-ए-हक़ है सबाहत से तमाशा है वो रुख़

हैदर अली आतिश

मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था

हैदर अली आतिश

ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे

हैदर अली आतिश

जाँ-बख़्श लब के इश्क़ में ईज़ा उठाइए

हैदर अली आतिश

इंसाफ़ की तराज़ू में तौला अयाँ हुआ

हैदर अली आतिश

हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का

हैदर अली आतिश

ग़म नहीं गो ऐ फ़लक रुत्बा है मुझ को ख़ार का

हैदर अली आतिश

फ़र्त-ए-शौक़ उस बुत के कूचे में लगा ले जाएगा

हैदर अली आतिश

फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा

हैदर अली आतिश

दीवानगी ने क्या क्या आलम दिखा दिए हैं

हैदर अली आतिश

दहन पर हैं उन के गुमाँ कैसे कैसे

हैदर अली आतिश

चमन में शब को जो वो शोख़ बे-नक़ाब आया

हैदर अली आतिश

बला-ए-जाँ मुझे हर एक ख़ुश-जमाल हुआ

हैदर अली आतिश

आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का

हैदर अली आतिश

आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम

हैदर अली आतिश

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