विद्वान Poetry (page 27)

आइना-ख़ाना करेंगे दिल-ए-नाकाम को हम

हैदर अली आतिश

आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था

हैदर अली आतिश

आशिक़ की बे-कसी का तो आलम न पूछिए

हफ़ीज़ जौनपुरी

यही मसअला है जो ज़ाहिदो तो मुझे कुछ इस में कलाम है

हफ़ीज़ जौनपुरी

शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे

हफ़ीज़ जौनपुरी

साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई

हफ़ीज़ जौनपुरी

मिरे ऐबों की इस्लाहें हुआ कीं बहस-ए-दुश्मन से

हफ़ीज़ जौनपुरी

कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़

हफ़ीज़ जौनपुरी

करना जो मोहब्बत का इक़रार समझ लेना

हफ़ीज़ जौनपुरी

'हफ़ीज़' वस्ल में कुछ हिज्र का ख़याल न था

हफ़ीज़ जौनपुरी

दीवाने हुए सहरा में फिरे ये हाल तुम्हारे ग़म ने किया

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल इस लिए है दोस्त कि दिल में है जा-ए-दोस्त

हफ़ीज़ जौनपुरी

तौबा-नामा

हफ़ीज़ जालंधरी

वो अब्र जो मय-ख़्वार की तुर्बत पे न बरसे

हफ़ीज़ जालंधरी

निगाह-ए-आरज़ू-आमोज़ का चर्चा न हो जाए

हफ़ीज़ जालंधरी

मज़हका आओ उड़ाएँ इश्क़-ए-बे-बुनियाद का

हफ़ीज़ जालंधरी

इश्क़ के हाथों ये सारी आलम-आराई हुई

हफ़ीज़ जालंधरी

है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

तिरे जाते ही ये आलम है जैसे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

न पूछ क्यूँ मिरी आँखों में आ गए आँसू

हफ़ीज़ होशियारपुरी

मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

ऐसी भी क्या जल्दी प्यारे जाने मिलें फिर या न मिलें हम

हफ़ीज़ होशियारपुरी

आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

रह-ए-इरफ़ाँ में अपने होश को माइल समझते हैं

हफ़ीज़ फ़ातिमा बरेलवी

वो तो बैठे रहे सर झुकाए हुए

हफ़ीज़ बनारसी

कोई बतलाए कि ये तुर्फ़ा तमाशा क्यूँ है

हफ़ीज़ बनारसी

जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है

हफ़ीज़ बनारसी

जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई

हफ़ीज़ बनारसी

हज़ार ख़ाक के ज़र्रों में मिल गया हूँ मैं

हादी मछलीशहरी

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