विद्वान Poetry (page 25)

अश्क की ऐसी फ़रावानी पे रश्क आता है

हस्सान अहमद आवान

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया

हसरत मोहानी

घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता

हसरत मोहानी

आसान-ए-हक़ीकी है न कुछ सहल-ए-मजाज़ी

हसरत मोहानी

नज़र उस पर फ़िदा है जिस की ताबानी नहीं जाती

हसरत कमाली

अब तुझ से फिरा ये दिल-ए-नाकाम हमारा

हसरत अज़ीमाबादी

ये उस की मर्ज़ी कि मैं उस का इंतिख़ाब न था

हाशिम रज़ा जलालपुरी

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

है तन्हाई में बहना आँसुओं का

हसन अकबर कमाल

शहर में शोर है उस शोख़ के आ जाने का

हसन आबिद

कुछ अजीब आलम है होश है न मस्ती है

हसन आबिद

न वो वलवले हैं दिल में न वो आलम-ए-जवानी

हंस राज सचदेव 'हज़ीं'

काश होती न ये ख़ता हम से

हंस राज सचदेव 'हज़ीं'

तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ

हनीफ़ कैफ़ी

तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ

हनीफ़ कैफ़ी

वो कम-सिनी में भी 'अख़्गर' हसीन था लेकिन

हनीफ़ अख़गर

अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत

हनीफ़ अख़गर

हाल-ए-दिल-ए-बीमार समझ में चारागरों की आए कम

हनीफ़ अख़गर

दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ

हनीफ़ अख़गर

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

सूरज सा भी तारा हो ज़मीं सी भी ज़मीं हो

हामिद सलीम

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

हमीद नसीम

अब मिरा दर्द न तेरा जादू

हमीद नसीम

तबस्सुम में न ढल जाता गुदाज़ ग़म तो क्या करते

हमीद नागपुरी

ख़ुद अपने आप से हम बे-ख़बर से गुज़रे हैं

हमीद नागपुरी

हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज

हमीद नागपुरी

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