विद्वान Poetry (page 24)

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था

हुसैन ताज रिज़वी

मर-मिटे जब से हम उस दुश्मन-ए-दीं पर साहब

हुसैन मजरूह

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी

हुरमतुल इकराम

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था

होश तिर्मिज़ी

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

तारीकी में लिपटी हुई पुर-हौल ख़मोशी

हिमायत अली शाएर

तज़ाद

हिमायत अली शाएर

हरीफ़-ए-विसाल

हिमायत अली शाएर

बगूला

हिमायत अली शाएर

जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए

हिमायत अली शाएर

आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना

हिमायत अली शाएर

वुसअ'त तिलिस्म-ख़ाना-ए-आलम की क्या कहूँ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ

हज़ीं लुधियानवी

दिल की धड़कन मिरे माथे की शिकन है कि नहीं

हज़ार लखनवी

महदूद-निगाही के सनम टूट रहे हैं

हयात वारसी

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम

हातिम अली मेहर

सर झुकाता नहीं कभी शीशा

हातिम अली मेहर

खुल गया उन की मसीहाई का आलम शब-ए-वस्ल

हातिम अली मेहर

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें

हातिम अली मेहर

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