विद्वान Poetry (page 28)

यौम-ए-मई

हबीब जालिब

रेफ़्रेनडम

हबीब जालिब

ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम

हबीब जालिब

ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने

हबीब जालिब

तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है

हबीब जालिब

नज़र नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं

हबीब जालिब

जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो

हबीब जालिब

हम ने दिल से तुझे सदा माना

हबीब जालिब

अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ

हबीब जालिब

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हबीब मूसवी

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

हबीब मूसवी

अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ

हबीब मूसवी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

उमीद-ओ-बीम के आलम में दिल दहलता है

हबाब हाश्मी

आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं

गुलनार आफ़रीन

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

किस क़दर मुझ को ना-तवानी है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

कहिए क्या और फ़ैसले की बात

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

दिल के हर जुज़्व में जुदाई है

ग़ुलाम मौला क़लक़

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही

ग़ुलाम भीक नैरंग

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