सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई

सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई

दीदार-ए-यार सी भी दौलत नहीं है कोई

आँखों को खोल अगर तू दीदार का है भूका

चौदह तबक़ से बाहर नेमत नहीं है कोई

साबित तिरे दहन को क्या मंतिक़ी करेंगे

ऐसी दलील ऐसी हुज्जत नहीं है कोई

ये क्या समझ के कड़वे होते हैं आप हम से

पी जाएगा किसी को शर्बत नहीं है कोई

मैं ने कहा कभी तो तशरीफ़ लाओ बोले

म'अज़ूर रखिए वक़्त-ए-फ़ुर्सत नहीं है कोई

हम क्या कहें किसी से क्या है तरीक़ अपना

मज़हब नहीं है कोई मिल्लत नहीं है कोई

दिल ले के जान के भी साइल जो हो तो हाज़िर

हाज़िर जो कुछ है उस में हुज्जत नहीं है कोई

हम शायरों का हल्क़ा हल्क़ा है आरिफ़ों का

ना-आश्ना-ए-मअ'नी सूरत नहीं है कोई

दीवानों से है अपने ये क़ौल उस परी का

ख़ाकी ओ आतिशी से निस्बत नहीं है कोई

हज़्दा हज़ार आलम दम-भर रहा है तेरा

तुझ को न चाहे ऐसी ख़िल्क़त नहीं है कोई

नाज़ाँ न हुस्न पर हो मेहमाँ है चार दिन का

बे-ए'तिबार ऐसी दौलत नहीं है कोई

जाँ से अज़ीज़ दिल को रखता हूँ आदमी हूँ

क्यूँ-कर कहूँ मैं मुझ को हसरत नहीं है कोई

यूँ बद कहा करो तुम यूँ माल कुछ न समझो

हम सा भी ख़ैर-ख़्वाह-ए-दौलत नहीं है कोई

मैं पाँच वक़्त सज्दा करता हूँ इस सनम को

मुझ को भी ऐसी-वैसी ख़िदमत नहीं है कोई

मा-ओ-शुमा कह-ओ-मह करता है ज़िक्र तेरा

इस दास्ताँ से ख़ाली सोहबत नहीं है कोई

शहर-ए-बुताँ है 'आतिश' अल्लाह को करो याद

किस को पुकारते हो हज़रत नहीं है कोई

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