उजाले Poetry

अब शहर में कहाँ रहे वो बा-वक़ार लोग

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

वक़्त के पास कहाँ सारे हवाले होंगे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

बे-मुरव्वत हैं तो वापस ही उठा ले शब-ओ-रोज़

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

आँसू

ज़िया जालंधरी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं

ज़ेहरा निगाह

अद्ल का फ़ुक़्दान

ज़ेहरा अलवी

अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है

ज़मीर अतरौलवी

मैं ने माँगी थी उजाले की फ़क़त एक किरन

ज़किया ग़ज़ल

'अनीस-नागी' के नाम

ज़ाहिद मसूद

तीरा-ओ-तार ज़मीनों के उजाले दरिया

ज़ाहिद फ़ारानी

निगाह-ए-हुस्न-ए-मुजस्सम अदा को छूते ही

ज़फ़र मुरादाबादी

जो सुख के उजाले में था परछाईं हमारी

यशपाल गुप्ता

यूँ बाग़ कोई हम ने उजड़ता नहीं देखा

यशपाल गुप्ता

ज़ेहन का कुछ मुंतशिर तो हाल का ख़स्ता रहा

यासीन अफ़ज़ाल

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

यगाना चंगेज़ी

दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त

वसी शाह

अँधेरों में उजाले ढूँढता हूँ

वाहिद प्रेमी

खंडर आसेब और फूल

वहीद अख़्तर

घनी रात

उमर फ़ारूक़

दिल ने फिर चाहा उजाले का समुंदर होना

तुफ़ैल चतुर्वेदी

चश्म-ए-बीना! तिरे बाज़ार का मेआर हैं हम

तारिक़ क़मर

बड़ी हवेली के तक़्सीम जब उजाले हुए

तारिक़ क़मर

दुखों की वादी में हर शाम का गुज़र ऐसे

सय्यदा ज़िया ख़ालिदा

बरसों हुए उस से न कोई बात हुई रात

सुहैल काकोरवी

हम-ज़ाद

शाज़ तमकनत

छटा आदमी

शाज़ तमकनत

छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी

शाज़ तमकनत

कितने नाज़ुक कितने ख़ुश-गुल फूलों से ख़ुश-रंग प्याले

शरीफ़ कुंजाही

पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए

शारिब मौरान्वी

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