उजाले Poetry (page 3)

ये मत भुला कि यहाँ जिस क़दर उजाले हैं

सअादत बाँदवी

पुर-हौल ख़राबों से शनासाई मिरी है

रूही कंजाही

वही तवील सी राहें सफ़र वही तन्हा

ऋषि पटियालवी

ना-ख़ुश गदाई से न वो शाही से ख़ुश हुए

रऊफ़ ख़ैर

अँधेरों में उजाले खो रहे हैं

रासिख़ इरफ़ानी

ज़िंदगी थी ये तमाशा तो नहीं था पहले

राशिद तराज़

तुम पसीना मत कहो है जाँ-फ़िशानी का लिबास

रम्ज़ अज़ीमाबादी

नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है

रमेश कँवल

ऐ ख़ुदा तू ही मुझे चाहने वाला देना

राम दास

वो सवालात मुझ पर उछाले गए

राजेन्द्र कलकल

शमएँ जुगनू चाँद के हाले जम्अ करो

राज खेती

शमएँ जुगनू चाँद के हाले जम्अ' करो

राज खेती

न शिकवे हैं न फ़रियादें न आहें हैं न नाले हैं

राही शहाबी

ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है

इनाम नदीम

वो रश्क-ए-मेहर-ओ-क़मर घात पर नहीं आता

इमदाद अली बहर

पहले तो आती थीं ईदें भी तुम्हारे आए

इकराम आज़म

ख़ौफ़ के सैल-ए-मुसलसल से निकाले मुझे कोई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है

इब्राहीम अश्क

ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का बहुत

हुमैरा राहत

वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए

हुमैरा राहत

सूरज के उजाले में चराग़ाँ नहीं मुमकिन

हिमायत अली शाएर

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

जो मय-कदे में बहकते हैं लड़खड़ाते हैं

हयात वारसी

पर-ए-जिब्रील भी जिस राह में जल जाते हैं

हयात मदरासी

ज़ुल्मत ही पहले थी जो हवाले में रह गई

हसन निज़ामी

तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत

हकीम नासिर

कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है

हकीम नासिर

वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे

हैदर क़ुरैशी

वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे

हैदर क़ुरैशी

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