वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे
जिस्म ओ जाँ सब उस के हवाले कर रक्खे थे
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फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है
दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं
अब के उस ने कमाल कर डाला
मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
चाँद बन कर चमकने वाले ने
तुम्हारे इश्क़ में किस किस तरह ख़राब हुए
लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं
दिल को तो बहुत पहले से धड़का सा लगा था
मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया
अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ