दिल को तो बहुत पहले से धड़का सा लगा था
पाना तिरा शायद तुझे खोने के लिए है
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अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ
मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
उस दरबार में लाज़िम था अपने सर को ख़म करते
लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं
मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया
पानी में भी चाँद सितारे उग आते हैं
आप लोगों के कहे पर ही उखड़ जाते हैं
दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं
इक ख़्वाब कि जो आँख भिगोने के लिए है
फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है
जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है
अजीब कर्ब-ओ-बला की है रात आँखों में