दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं
ख़िज़ाँ-रुत का गुज़र जाना ज़रूरी हो गया है
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
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Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
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दिल को तो बहुत पहले से धड़का सा लगा था
तुम्हारे इश्क़ में किस किस तरह ख़राब हुए
पानी में भी चाँद सितारे उग आते हैं
मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया
मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
अजीब कर्ब-ओ-बला की है रात आँखों में
चाँद बन कर चमकने वाले ने
वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे
फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है
आप लोगों के कहे पर ही उखड़ जाते हैं
उस दरबार में लाज़िम था अपने सर को ख़म करते