चाँद बन कर चमकने वाले ने
मुझ को सूरज-मिसाल कर डाला
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इक ख़्वाब कि जो आँख भिगोने के लिए है
अजीब कर्ब-ओ-बला की है रात आँखों में
अंदर की दुनियाएँ मिला के एक नगर हो जाएँ
अब के उस ने कमाल कर डाला
मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब
आप लोगों के कहे पर ही उखड़ जाते हैं
तुम्हारे इश्क़ में किस किस तरह ख़राब हुए
मेरे उस के दरमियाँ जो फ़ासला रक्खा गया
जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है
दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं
उस दरबार में लाज़िम था अपने सर को ख़म करते
वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे