उजाले Poetry (page 2)
हमारे सर हर इक इल्ज़ाम धर भी सकता है
शारिब मौरान्वी
निकल पड़े हैं सनम रात के शिवाले से
शमीम करहानी
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
शकेब जलाली
आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे
शकेब जलाली
बहुत घुटन है यहाँ पर कोई बचा ले मुझे
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
है शर्त क़ीमत-ए-हुनर भी अब तो रब्त-ए-ख़ास पर
शाहिदा तबस्सुम
इक हुजूम-ए-गिर्या की हर नज़र तमाशाई
शाहिदा तबस्सुम
अपने हमराह मोहब्बत के हवाले रखना
शाहिद फ़रीद
शब-चराग़ कर मुझ को ऐ ख़ुदा अँधेरे में
शबनम रूमानी
इजाज़त दे कि अपनी दास्तान-ए-ग़म बयाँ कर लें
सीमाब अकबराबादी
बड़ी दिलचस्पियों से सुब्ह-ए-शाम-ए-ज़िंदगी होगी
सीमाब अकबराबादी
जिस को लगता है गुम-शुदा हूँ मैं
सीमा शर्मा सरहद
रौशनी से तीरगी ताबीर कर दी जाएगी
सरवर अरमान
तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी
साक़ी फ़ारुक़ी
एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा
साक़ी फ़ारुक़ी
अमीर-ए-शहर के आँगन में जब उजाले हुए
संजय मिश्रा शौक़
इक उम्र की देर
समीना राजा
बेड़ियाँ डाल के परछाईं की पैरों में मिरे
सलीम सिद्दीक़ी
शब के पुर-हौल मनाज़िर से बचा ले मुझ को
सलीम सिद्दीक़ी
बदन क़ुबूल है उर्यानियत का मारा हुआ
सलीम सिद्दीक़ी
किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग
सलीम कौसर
कुछ नए ख़्वाब हर इक फ़स्ल में पाले गए हैं
सलीम फ़राज़
सहराओं में जा पहुँची है शहरों से निकल कर
सलीम बेताब
शुआ-ए-फ़र्दा
साहिर लुधियानवी
हिरास
साहिर लुधियानवी
ज़र्द सूरज
सहर अंसारी
तख़्लीक़ अँधेरों से किए हम ने उजाले
साग़र निज़ामी
सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया
साग़र निज़ामी
अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम
सचिन शालिनी
वो धूप वो गलियाँ वही उलझन नज़र आए
साबिर वसीम
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