तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी
और मिरी रूह में नादार अंधेरा ऐसा
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पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला
बद-गुमानी
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए
ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे
बाहर के असरार लहू के अंदर खुलते हैं
तुझ से मिलने का रास्ता बस एक
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
क़त्ल करने का इरादा है मगर सोचता हूँ
मस्ताना हीजड़ा
वो लोग जो ज़िंदा हैं वो मर जाएँगे इक दिन
हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में