ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे
ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे
जो हासिल-ए-सफ़र है मोअ'त्तल न कर उसे
वो शो'ला-ए-सवाल कि दुनिया उजाल दे
दिल के चराग़ में तो मुक़फ़्फ़ल न कर उसे
हर शेल्फ़ पर सजे हैं मगर दुश्मनों के सर
नादाँ तेरा दिमाग़ है मक़्तल न कर उसे
हैरत तिरी सरिश्त है ना-रस तिरी निगाह
वो उक़्दा-ए-जमाल अभी हल न कर उसे
ये और बात एक सितारे से जंग है
बस जंग है जिहाद-ए-मुसलसल न कर उसे
(450) Peoples Rate This