प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर
भागती जाती हैं लहरें ये तमाशा देख कर
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ख़ाली बोरे में ज़ख़्मी बिल्ला
हमला-आवर कोई अक़ब से है
पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू
मिट जाएगा सेहर तुम्हारी आँखों का
ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत
बाकिरा
रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल है
तमाम जिस्म की उर्यानियाँ थीं आँखों में
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
मेरी अय्यार निगाहों से वफ़ा माँगता है
रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे
ज़मानों के ख़राबों में उतर कर देख लेता हूँ