मिट जाएगा सेहर तुम्हारी आँखों का
अपने पास बुला लेगी दुनिया इक दिन
Jaun Eliya
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Gulzar
Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा
हम-ज़ाद
वो सख़ी है तो किसी रोज़ बुला कर ले जाए
मैं अपने शहर से मायूस हो के लौट आया
तुझ से मिलने का रास्ता बस एक
ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए
नामों का इक हुजूम सही मेरे आस-पास
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
दीवार
मैं फिर से हो जाऊँगा तन्हा इक दिन
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए