मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते
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तौजीह
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा
रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना
रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल है
तमाम जिस्म की उर्यानियाँ थीं आँखों में
ये क्या तिलिस्म है क्यूँ रात भर सिसकता हूँ
दर्द पुराना आँसू माँगे आँसू कहाँ से लाऊँ
जो तेरे दिल में है वो बात मेरे ध्यान में है
मुहासरा