मुझ में सात समुंदर शोर मचाते हैं
एक ख़याल ने दहशत फैला रक्खी है
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
ये किस ने भरम अपनी ज़मीं का नहीं रक्खा
वो लोग जो ज़िंदा हैं वो मर जाएँगे इक दिन
सदमा
नौहा
मगर उन सीपियों में पानियों का शोर कैसा था
वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे
दीवार
जिस की हवस के वास्ते दुनिया हुई अज़ीज़
शहर का शहर हुआ जान का प्यासा कैसा
अलकुबड़े
अजब कि सब्र की मीआद बढ़ती जाती है