जिस की हवस के वास्ते दुनिया हुई अज़ीज़
वापस हुए तो उस की मोहब्बत ख़फ़ा मिली
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ख़ाक मैं उस की जुदाई में परेशान फिरूँ
सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
जान प्यारी थी मगर जान से बे-ज़ारी थी
मिट जाएगा सेहर तुम्हारी आँखों का
मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है
ख़ाली बोरे में ज़ख़्मी बिल्ला
ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे
फैंटेसी
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा
तुझे ख़बर है तुझे याद क्यूँ नहीं करते