हम तंगना-ए-हिज्र से बाहर नहीं गए
तुझ से बिछड़ के ज़िंदा रहे मर नहीं गए
Wasi Shah
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
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सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
हद-बंदी-ए-ख़िज़ाँ से हिसार-ए-बहार तक
बुझे लबों पे है बोसों की राख बिखरी हुई
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
मुहासरा
तुझे ख़बर है तुझे याद क्यूँ नहीं करते
दर्द पुराना आँसू माँगे आँसू कहाँ से लाऊँ
मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था
मैं वो हूँ जिस पे अब्र का साया पड़ा नहीं
नामों का इक हुजूम सही मेरे आस-पास
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है