हैरानी में हूँ आख़िर किस की परछाईं हूँ
वो भी ध्यान में आया जिस का साया कोई न था
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मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है
सुर्ख़ चमन ज़ंजीर किए हैं सब्ज़ समुंदर लाया हूँ
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
दुनिया
बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई
दामन में आँसुओं का ज़ख़ीरा न कर अभी
मैं अपनी आँखों से अपना ज़वाल देखता हूँ
घर
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
मौत ने पर्दा करते करते पर्दा छोड़ दिया
ख़ाली बोरे में ज़ख़्मी बिल्ला