मैं अपनी आँखों से अपना ज़वाल देखता हूँ
मैं बेवफ़ा हूँ मगर बे-ख़बर न जान मुझे
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मस्ताना हीजड़ा
मौत की ख़ुशबू
मुझ में सात समुंदर शोर मचाते हैं
दुनिया पे अपने इल्म की परछाइयाँ न डाल
तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है
बाकिरा
सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए
वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है
मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए
ज़िंदा पानी सच्चा