दुनिया पे अपने इल्म की परछाइयाँ न डाल
ऐ रौशनी-फ़रोश अंधेरा न कर अभी
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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Wasi Shah
Rahat Indori
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आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो
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हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में
वही जीने की आज़ादी वही मरने की जल्दी है
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
डस्टबिन
सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर
मैं तो ख़ुदा के साथ वफ़ादार भी रहा
ख़ाली बोरे में ज़ख़्मी बिल्ला
मैं और मैं!
छुप के मिलने आ जाए रौशनी की जुरअत क्या
अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा