मैं तो ख़ुदा के साथ वफ़ादार भी रहा
ये ज़ात का तिलिस्म मगर टूटता नहीं
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मुहासबा
बद-गुमानी
शेर-इमदाद-अली का मेडक
ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना
तुझे ख़बर है तुझे याद क्यूँ नहीं करते
फैंटेसी
बाकिरा
सुब्ह तक रात की ज़ंजीर पिघल जाएगी
वो ख़ुश-ख़िराम कि बुर्ज-ए-ज़वाल में न मिला
हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
ख़रगोश की सरगुज़िश्त