सुब्ह तक रात की ज़ंजीर पिघल जाएगी
लोग पागल हैं सितारों से उलझना कैसा
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ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे
शहर का शहर हुआ जान का प्यासा कैसा
मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
तुझ से मिलने का रास्ता बस एक
इक याद की मौजूदगी सह भी नहीं सकते
तमाम जिस्म की उर्यानियाँ थीं आँखों में
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई
डस्टबिन
रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे