मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है
जिस के मिलने से मिरी ज़ात को इज़हार मिले
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ख़रगोश की सरगुज़िश्त
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
दुनिया
सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
हम तंगना-ए-हिज्र से बाहर नहीं गए
एक कुत्ता नज़्म
हमला-आवर कोई अक़ब से है
मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए
हमल-सरा
मगर उन सीपियों में पानियों का शोर कैसा था