डूब जाने का सलीक़ा नहीं आया वर्ना
दिल में गिर्दाब थे लहरों की नज़र में हम थे
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मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो
मैं अपने शहर से मायूस हो के लौट आया
मैं फिर से हो जाऊँगा तन्हा इक दिन
वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई
सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने
अजनबी
तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी
एक कुत्ता नज़्म
तुझे ख़बर है तुझे याद क्यूँ नहीं करते
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था