दिल ही अय्यार है बे-वज्ह धड़क उठता है
वर्ना अफ़्सुर्दा हवाओं में बुलावा कैसा
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शेर-इमदाद-अली का मेडक
हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है
वो ख़ुश-ख़िराम कि बुर्ज-ए-ज़वाल में न मिला
मैं और मैं!
मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
पोस्टर
पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला
ज़िंदा पानी सच्चा
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
यूँ मिरे पास से हो कर न गुज़र जाना था
दुनिया पे अपने इल्म की परछाइयाँ न डाल