याद की दीवार है
दीवार पर एक पोस्टर
और पोस्टर में कामनी...
सब्ज़ आँखें
बे-कराँ आँखें तिरी
कल्बा-ए-निस्यान में
और बर्फ़ के तूफ़ान में
धुँदली हुईं, ख़ाली हुईं
ये फ़ना के गर्म बोसों के निशाँ
जल गया मिट्टी का रस
राएगाँ सब राएगाँ
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पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू
अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा
रूह में रेंगती रहती है गुनह की ख़्वाहिश
नामों का इक हुजूम सही मेरे आस-पास
उस के वारिस नज़र नहीं आए
कैमरा
इक याद की मौजूदगी सह भी नहीं सकते
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
ख़रगोश की सरगुज़िश्त
अजनबी
यहीं कहीं पे कभी शोला-कार मैं भी था
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला